Tuesday, October 23, 2012

मैया होइयौ ने सहाय,खेलै छी हम झिझिया

एक टा जमाना छल जखन गुजरातक डांडिया जकां मिथिला मेँ झिझियाक धूम रहैत छल।नवरात्रिक दौरान प्राय: सभ गाम सऽ झिझिया खेलाय लेल एकटा टोली निकलैत छल,बहुतो गाम मेँ तऽ एकटा से बेसी टोली निकलैत छल।मां दुर्गा के सामने झिझिया नृत्य-गायनक संग गामक गली मेँ सेहो टोली घूमैत छल,लेकिन आधुनिकताक प्रभावक प्रतापे इ लोक परंपरा खत्म होइत जा रहल हँ।बहुत कम ठाम आब इ परंपरा जीवित अछि आ ओहो मेँ नव पीढ़ी केर लोक नहिँ देखल जाइत छैथ।एहन मान्यता रहल अछि जे दुर्गा पूजाक समय कारी जादू करय वला लोक सभ अपन जादू से लोक सभ के परेशान करैत अछि,मुदा जे आदमी झिझिया देखि लैत छैक ओकरा पर एकर कोनो असर नहिँ होइत छैक आ ओ सुरक्षित रहैत छैथ।झिझिया मेँ छिद्रयुक्त माटिक दू टा घैल रहैत अछि आ दुनू के बीच मेँ माटिक ढाकन रहैत अछि।दुनू घैला मेँ दीप जराओल जाइत अछि।एकरा बादओहि घैला के माथ पर राखि कऽ महिला घर से निकलैत झिझिया गाबैत,नाचैत मैया लग पहुंचैत छैथ आ ओतय मैया के प्रसन्न करय लेल एकटा विशेष तरहक नृत्य होइत अछि।एकरा बाद महिला लोकनि गामक गली मेँ घूमैत छैथि।जाहि महिला के माथ पर घैल रहैत छन ओ बीच मेँ रहैत छैथि आ बाद बाकी महिला लोकनि हुनका चारु कात घेरा बना लैत छैथ।एहि दौरान अपन परिवारक संग गामक कल्याण लेल कामना कैल जायत अछि।एहि दौरान झिझिया सऽ जुड़ल गीत -दुर्गा मैया होइयौ ने सहाय,खेलै छी हम झिझिया,के तोरा देलकउ दुर्गा झिझियो के पतिया,दमदा के आगर देबौ,भतरा के छागर देबौ आदि लगातार गाओल जाइत अछि।पुरान पीढ़ी के कंठ मेँ इ गीत ठहरि जाइत अछि मुदा नबका पीढ़ी के अधिकतर आदमी एकरा बेकार मानैत छैथ।एहि भौतिकवादी आ इक्कीसम सदीक युग मेँ झिझिया खेलय वला के अनपढ़ आ अंधविश्वासी मानल जाइ लागल हँ,एहि कारणवश झिझायाक टोली दिनानुदिन घटल जा रहल अछि।झिझिया तऽ खराब विचार आ दोसरक अहितक सोच से दूर रहबाक संगे सर्व कल्याण भावनाक संदेशक माध्यम अछि।

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