मधुबनी जिलाक विस्फी गाममे गणपति ठाकुरक पुत्र रूपमे अवतरित महाकवि विद्यापति पांडित्य परंपरा केँ कायम रखैत आइनवार राजवंशक शासनकालमे मागदर्शन करैत छलाह। महाराज शिवसिंह हिनका इ गाम दानमे देने छलथि। राजा देव सिंह, कीर्ति सिंह, शिवसिंह, पद्मसिंह, नरसिंह, धीर सिंह, भैरव सिंहक मार्गदर्शनक अलावे ओ रानी लखिया देवी, विश्वास देवी आ धीरमती देवीक सलाहकार सेहो छलथि। वैष्णव आ शैव भक्तिक अलावे श्रृंगार रस, भक्ति रसक रचनामे इ विषय, उपमा, अलंकार, परिवेश आदिक अंधानुकरण नहिँ केलनि बल्कि अप्पन जीवनक महत्वपूर्ण आ मार्मिक अनुभव आ आस्थाक समावेश कऽ लोकक हृदयमे स्थान बनौलनि। एहि कारणवश हिनक रचना मिथिले टा नहिँ बल्कि भारतीय साहित्यक अनमोल धरोहर बनि गेल अछि। बटगमनी, बारहमासा, विरह गीत, भगवान गीत, भगवती गीत, भजन, विवाह गीत तऽ घर-घर गाओल जाइत अछि। पुरूष परीक्षा, भू परिक्रमा, कीर्तिलता, कीर्तिपताका, पदावली आदि प्रमुख ग्रंथ अछि। हमर दुखक नहि ओर, लोचन धाय फेनायल हे, शैशव यौवन दुहु मिल गेल, श्रवणक पथ दुहु लोचन लेल, सरसिज बिनु सर सर बिनु सरसिज आदि प्रमुख गीत अछि। कहल जाइत अछि जे महाकवि केँ जखन लागल जे हुनक अंतिम समय लग आबि रहल अछि तऽ ओ गंगा तट लऽ जेबाक इच्छा जतौलनि। पालकीसऽ हिनका गंगा तट धरि लऽ जाएल जा रहल छल जखन गंगाजी दू कोस दूर छली तऽ इ पालकी रखवा देलनि आ कहलनि जे जखन पुत्र ऐतक दूर सऽ एतय धरि पहुंच गेल तऽ की मां दू कोस नहिँ आबि सकती। कनिके कालक बाद गंगाक धारा हिनक निकट पहुंचि गेल। गंगा तट पर इ बड़ सुख पाओल तुअ तट तीरे, छोड़इत निकट नयन बह नीरे.. केर रचना केलनि। बनमखनी आइ विद्यापति पर्व समारोह मना धन्य बुझैत अछि!
विद्यापति समारोह आयोजित कऽ धन्य भेल बनमनखी
बनमनखी(पूर्णिया) : मिथिलाक घरमे कोनो उत्सव होए आ महाकवि विद्यापतिक भगवती गीत 'जय-जय भैरवि असुर भयाउनि, पशुपति भामिनी माया' गाबि कऽ भगवतीक आह्वान नहिँ कएल जाए, एहन नहिँ भऽ सकैत अछि। कवि कोकिल विद्यापति मात्र कवि टा नहिँ बल्कि युगद्रष्टा, युगसृष्टा सेहो छलथि। मैथिलीक अलावे अवहट्ट आ संस्कृत भाषामे हुनक रचना भारतीय साहित्यक अनुपम वैभव अछि। हुनक बहुतो अनमोल रचना मिथिलाक संगे नेपाल, असम, बंगाल, उड़ीसा आदि क्षेत्रक लोकव्यवहारमे भक्तिरस, श्रृंगार रसक गीत बनि कऽ बहैत रहैत अछि। हुनक जयंतीपर बनमनखीमे आयोजित समारोहमे इ बात सभविद्वान लोकनि कहला।
मधुबनी जिलाक विस्फी गाममे गणपति ठाकुरक पुत्र रूपमे अवतरित महाकवि विद्यापति पांडित्य परंपरा केँ कायम रखैत आइनवार राजवंशक शासनकालमे मागदर्शन करैत छलाह। महाराज शिवसिंह हिनका इ गाम दानमे देने छलथि। राजा देव सिंह, कीर्ति सिंह, शिवसिंह, पद्मसिंह, नरसिंह, धीर सिंह, भैरव सिंहक मार्गदर्शनक अलावे ओ रानी लखिया देवी, विश्वास देवी आ धीरमती देवीक सलाहकार सेहो छलथि। वैष्णव आ शैव भक्तिक अलावे श्रृंगार रस, भक्ति रसक रचनामे इ विषय, उपमा, अलंकार, परिवेश आदिक अंधानुकरण नहिँ केलनि बल्कि अप्पन जीवनक महत्वपूर्ण आ मार्मिक अनुभव आ आस्थाक समावेश कऽ लोकक हृदयमे स्थान बनौलनि। एहि कारणवश हिनक रचना मिथिले टा नहिँ बल्कि भारतीय साहित्यक अनमोल धरोहर बनि गेल अछि। बटगमनी, बारहमासा, विरह गीत, भगवान गीत, भगवती गीत, भजन, विवाह गीत तऽ घर-घर गाओल जाइत अछि। पुरूष परीक्षा, भू परिक्रमा, कीर्तिलता, कीर्तिपताका, पदावली आदि प्रमुख ग्रंथ अछि। हमर दुखक नहि ओर, लोचन धाय फेनायल हे, शैशव यौवन दुहु मिल गेल, श्रवणक पथ दुहु लोचन लेल, सरसिज बिनु सर सर बिनु सरसिज आदि प्रमुख गीत अछि। कहल जाइत अछि जे महाकवि केँ जखन लागल जे हुनक अंतिम समय लग आबि रहल अछि तऽ ओ गंगा तट लऽ जेबाक इच्छा जतौलनि। पालकीसऽ हिनका गंगा तट धरि लऽ जाएल जा रहल छल जखन गंगाजी दू कोस दूर छली तऽ इ पालकी रखवा देलनि आ कहलनि जे जखन पुत्र ऐतक दूर सऽ एतय धरि पहुंच गेल तऽ की मां दू कोस नहिँ आबि सकती। कनिके कालक बाद गंगाक धारा हिनक निकट पहुंचि गेल। गंगा तट पर इ बड़ सुख पाओल तुअ तट तीरे, छोड़इत निकट नयन बह नीरे.. केर रचना केलनि। बनमखनी आइ विद्यापति पर्व समारोह मना धन्य बुझैत अछि!
मधुबनी जिलाक विस्फी गाममे गणपति ठाकुरक पुत्र रूपमे अवतरित महाकवि विद्यापति पांडित्य परंपरा केँ कायम रखैत आइनवार राजवंशक शासनकालमे मागदर्शन करैत छलाह। महाराज शिवसिंह हिनका इ गाम दानमे देने छलथि। राजा देव सिंह, कीर्ति सिंह, शिवसिंह, पद्मसिंह, नरसिंह, धीर सिंह, भैरव सिंहक मार्गदर्शनक अलावे ओ रानी लखिया देवी, विश्वास देवी आ धीरमती देवीक सलाहकार सेहो छलथि। वैष्णव आ शैव भक्तिक अलावे श्रृंगार रस, भक्ति रसक रचनामे इ विषय, उपमा, अलंकार, परिवेश आदिक अंधानुकरण नहिँ केलनि बल्कि अप्पन जीवनक महत्वपूर्ण आ मार्मिक अनुभव आ आस्थाक समावेश कऽ लोकक हृदयमे स्थान बनौलनि। एहि कारणवश हिनक रचना मिथिले टा नहिँ बल्कि भारतीय साहित्यक अनमोल धरोहर बनि गेल अछि। बटगमनी, बारहमासा, विरह गीत, भगवान गीत, भगवती गीत, भजन, विवाह गीत तऽ घर-घर गाओल जाइत अछि। पुरूष परीक्षा, भू परिक्रमा, कीर्तिलता, कीर्तिपताका, पदावली आदि प्रमुख ग्रंथ अछि। हमर दुखक नहि ओर, लोचन धाय फेनायल हे, शैशव यौवन दुहु मिल गेल, श्रवणक पथ दुहु लोचन लेल, सरसिज बिनु सर सर बिनु सरसिज आदि प्रमुख गीत अछि। कहल जाइत अछि जे महाकवि केँ जखन लागल जे हुनक अंतिम समय लग आबि रहल अछि तऽ ओ गंगा तट लऽ जेबाक इच्छा जतौलनि। पालकीसऽ हिनका गंगा तट धरि लऽ जाएल जा रहल छल जखन गंगाजी दू कोस दूर छली तऽ इ पालकी रखवा देलनि आ कहलनि जे जखन पुत्र ऐतक दूर सऽ एतय धरि पहुंच गेल तऽ की मां दू कोस नहिँ आबि सकती। कनिके कालक बाद गंगाक धारा हिनक निकट पहुंचि गेल। गंगा तट पर इ बड़ सुख पाओल तुअ तट तीरे, छोड़इत निकट नयन बह नीरे.. केर रचना केलनि। बनमखनी आइ विद्यापति पर्व समारोह मना धन्य बुझैत अछि!
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