Sunday, September 28, 2014

मैया होइयौ ने सहाय, खेलै छी हम झिझिया

सहरसा : एक टा जमाना छल जखन गुजरातक डांडिया जेकां मिथिलामे झिझियाक धूम रहैत छल। नवरात्रिक दौरान प्राय: सभ गाम सऽ झिझिया खेलाय लेल एकटा टोली निकलैत छल, बहुतो गाममे तऽ एकटासं बेसी टोली निकलैत छल। मां दुर्गाक सोँझा झिझिया नृत्य-गायनक संग गामक गलीमे सेहो टोली घूमैत छल, मुदा आधुनिकताक प्रभावक प्रतापे इ लोक परंपरा खत्म होइत जा रहल अछि। बहुत कम ठाम आब इ परंपरा जीवित अछि आ ओहोमे नव पीढ़ी केर लोक नहि देखल जाइत छथि।

एहन मान्यता रहल अछि जे दुर्गा पूजाक समय कारी जादू-टोना करनिहार अप्पन जादूसं लोकसभ केँ परेशान करैत अछि, मुदा जे आदमी झिझिया देखि लैत छैक ओकरा पर एकर कोनो असर नहि होइत छैक आ ओ सुरक्षित रहैत छथि। झिझियामे छिद्रयुक्त माटिक दू टा घैल रहैत अछि आ दुनू के बीचमे माटिक ढाकन रहैत अछि। दुनू घैलामे दीप जराओल जाइत अछि। एकरा बाद ओहि घैला के माथ पर राखि कऽ महिला घरसं निकलैत झिझिया गाबैत, नाचैत मैया लग पहुंचैत छथि आ ओतय मैया केँ प्रसन्न करबा लेल एकटा विशेष तरहक नृत्य होइत अछि। एकरा बाद महिला लोकनि गामक गलीमे घूमैत छथि। जाहि महिलाक माथ पर घैल रहैत अछि ओ बीचमे रहैत छथि आ बाद बाकी महिला लोकनि हुनका चारु कात घेरा बना लैत छथि। एहि दौरान अपन परिवारक संग गामक कल्याण लेल कामना कैल जायत अछि। एहि दौरान झिझिया सऽ जुड़ल गीत - दुर्गा मैया होइयौ ने सहाय, खेलै छी हम झिझिया, के तोरा देलकउ दुर्गा झिझियो के पतिया, दमदा के आगर देबौ, भतरा के छागर देबौ आदि लगातार गाओल जाइत अछि। पुरान पीढ़ीक कंठमे इ गीत ठहरि जाइत अछि मुदा नबका पीढ़ी के अधिकतर आदमी एकरा बेकार मानैत छथि। एहि भौतिकवादी आ इक्कीसम सदीक युगमे झिझिया खेलनिहार केँ अनपढ़ आ अंधविश्वासी मानल जाइ लागल अछि, एहि कारणवश झिझायाक टोली दिनानुदिन घटल जा रहल अछि। झिझिया तऽ खराब विचार आ दोसरक अहितक सोच से दूर रहबाक संगे सर्व कल्याण भावनाक संदेशक माध्यम अछि।

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