इतिहास साक्षी अछि जे एहि क्षेत्रक पानि आ स्थल मार्गसँ वैश्विक व्यापार होइत छल। नदीक जालसँ अंग्रेजक समयमे इक्षेत्र आर्थिक विकासमे अप्पन एकटा अलग स्थान रखैत छल। कटिहार, पूर्णिया, सहरसा, सुपौल, मधुबनी, दरभंगा सन जिलामे छोट-पैघ नदी आ हजारों पोखरिमे मत्स्य उद्योग विकसित कएल जा सकता अछि। मिथिलाक मीठ पानिमे माछ पालनाय केँ जौँ बढ़ावा देल जाए तऽ पैघ स्तर पर माछक निर्यात कएल जा सकत। क्षेत्रक जलीय संग्रहण क्षेत्रमे सिंघाड़ा, मखानक जबर्दस्त खेती भऽ सकैत अछि। क्षेत्रमे मखान, सिंघाड़ा, केरा आ मकइक खेती केँ देखैत, कतेको बरखसँ एतय फूड प्रोसेसिंग उद्योग स्थापित करबाक जरूरत बुझना जा रहल अछि। एकर स्थापना होएबासँ सिंघाड़ा आ मखानक खेती केँ एतयबढ़िया भऽ सकैत अछि। स्थानीय स्तर पर आमक फसिल सेहो आठीक दाम दऽ सकैत अछि। आमक खेती केँ देखैत अम्मट आ आमचूर्ण पर आधारित छोट उद्योग पंचायत स्तर धरि लगाओल जा सकैत अछि।
विशेषज्ञ बतौबति छथि जे नम वातावरणक कारणे महंग खाद्य मशरूम ग्लोबल मार्केटमे मिथिला क्षेत्र केँ पहिचान दिया सकैत अछि। उत्तरी मिथिलाक ढालुनुमा जमीन पर चायक खेती केँ सेहो बढ़ावा देल जा सकैत अछि। एहि संबंधमे जानल-मानल अर्थशास्त्री डॉ. एसके झा बतौबति छथि जे उत्तरी मिथिलामे कृषि आधारित उद्योगक व्यापक संभावना अछि। माछ पालन, सिंघाड़ा, मखान आ मशरूमक खेतीसँ किसान केँ आर्थिक रूपे समृद्ध कएल जा सकैता अछि। जरूरत अछि तऽ मात्र दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्तिक।
नीक आलेख!
ReplyDeleteकृषि आधारित उद्योग मिथिला प्रदेशक विकाश लेल सर्वथा उपयुक्त।
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